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Peer Parai Har Leta Hoon

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डॉ. विजय खरा की कावयकति "पीर पराई हर लता ह" का परकाशन हिनदी जगत की लोक मगलकारी घटना ह। इस कावय-सगरह म अभिवयकत उनक भावोदवग जनमानस की सवदनशीलता को न कवल झकत करत ह, बलकि उनह विवकसममत दिशा भी परदान करत ह। समाज को पीडा-मकत करन की अभिलाषा न डॉ. खरा की परतिभा को अनक कषतरो म विकसित किया ह। पजय पिता सवाधीनता सगराम सनानी एव महान कवि-उपनयासकार शरी रमानाथ जी खरा क पद चिनहो न उनक परतिभा विकास को गतिशीलता परदान की।
यह एक सखद आशचरय ही ह कि राजनीति, दरशन, ससकति और समाज सवा क कषतर म परण रप स समरपित डॉ. विजय खरा न कावय-सजन क कषतर म परवश करत ही मानस क राजहस होन का परिचय दिया। तारकिकता क साथ भावानातमकता का, बौधिक विचारशीलता क साथ सकरियता का ऐसा मणिकाचन योग असभव नही तो दरलभ ह ही।
इस कावय सगरह की मनमोहक रचनाओ म कछ रचनाए तो उनक रोमानी मिजाज को उदधारित करती ह किनत अधिकाश कविताए परबदध पाठको का धयान इसलिए आकरषित करती ह कयोकि उनम समाज क विभिनन वरगो क दख-दरदो क परति मतरीपरण करणा क भाव उदधलित किए गए ह। उतपीडित को व कभी छदर नही समझत। उनकी कविताओ म किसान, मजदर, करजदार गरीब, उतपीडित नारी, कठा गरसित परशान यवा एक ऐस सगी-साथी क रप म परसतत होता ह जस कि कोई इनका अपना हो जो पीडा क जाल म फस गया हो और उस शीघर बाहर निकालना हो।

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Product Details
Diamond Books
9352967933 / 9789352967933
Paperback / softback
22/02/2020
India
72 pages
140 x 220 mm