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Manusmriti Aur Adhunik Samaj

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'मनसमति' सामाजिक वयवसथा, विधि, नयाय एव परशासन-ततर पर विशव की पराचीनतम पसतक ह, जो विदवान महरषि मन दवारा ससकत की पदयातमक शली (शलोको) म लिऌा गई ह। इस गरथ म मन न ततकालीन समाज म परचलित करीतियो एव मनषय क सवभाव का अति सकषम परिवकषण कर मानव-समाज को सवयवसथित, सऌखी, सवसथ, सपनन, वभवशाली एव सरकषित बनान हत विविध नियमो का परावधान किया ह, ताकि नारी व परष, बचच व बजरग, विदवान व अनपढ, सवसथ व विकलाग, सपनन व गरीब, सभी सऌमान एव परतिषठा क साथ रह सक तथा समाज और दश की चतरमऌा उननति म अपना परशसनीय योगदान करन म सफल हो।मनुस्मृति किसी धर्म विशेष की पुस्तक नहीं है। यह वास्तव में मानव-धर्म की पुस्तक है तथा समाज की तत्कालीन स्थिति से परिचित कराती है। समाज की सुव्यवस्था हेतु मनुष्यों के लिए जो नियम अथवा अध्यादेश उपयुत समझे, मनु ने इस मानव-धर्म ग्रंथ में उनका विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। इसमें मानवाधिकारों के संरक्षण पर अनेक श्लोक हैं। मनुस्मृति में व्यतियों द्वारा प्राप्त ज्ञान, उनकी योग्यता एवं रुचि के अनुसार उनके कर्म निर्धारित किए गए हैं तथा कर्मानुसार ही प्रत्येक व्यति के अधिकारों, कर्तव्यों, उारदायित्वों एवं आचरणों के बारे में स्पष्ट मत व अध्यादेश अंकित हैं। सरल-सुबोध भाषा में समर्थ-सशत-समरस समाज का मार्ग प्रशस्त करनेवाला ज्ञान-संपन्न ग्रंथ।

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Product Details
Prabhat Prakashan
9352667999 / 9789352667994
Hardback
01/12/2018
India
176 pages
General (US: Trade) Learn More