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Mere Tuneer, Mere Baan

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हिदी साहितय म वयगय एक परवतति न होकर विधा बन गई ह। इसक मल म वयगय-आदोलन, तयागी-परसाई-जोशी जस सशकत वयगयकारो का आविरभाव तथा समाज म विपल वयगय-सामगरी की उपलबधि रही ह। आज समाज म, सवाधीनता परापति क बाद स जिस परकार विदरपता एव विसगति का विसतार हआ ह तथा वह तनावो और विडबनाओ एव अमानवीयता क जाल म जिस रप म फलती गई ह और कोई समाधान उसक सममख नही ह, तब लखक वयगय का सहारा लता ह और मनषय की मनोवततियो एव सामाजिक परिसथितियो की विदरपताओ, विसगतियो, विडबनाओ को वयगय की तीवर धारा स उनका उदघाटन करता ह। एक नए वयगयकार क लिए अपन समय की वयगय-रचनाओ स गजरना आवशयक ह। इसस उसक वयगय-ससकार पषट होत ह। अमरेंद्र अपने व्यंग्य-कर्म में इसी दायित्व को निभाते हैं तथा समाज और मनुष्य के सामने उनकी विडंबनाओं, विसंगतियों तथा विद्रूपताओं का चित्रण करके उन पर गहरी चोट करते हैं, जिससे पाठक स्वस्थ जीवन जी सके। इस संग्रह के जो व्यंग्य-लेख हैं, वे जीवन के विभिन्न पक्षों-संदर्भों से जुड़े हैं तथा भारत एवं अमेरिकी जीवन की विडंबनाओं पर प्रकाश डालते हैं।

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Product Details
Pawan Agrawal
9386870142 / 9789386870148
Hardback
01/12/2018
India
160 pages
General (US: Trade) Learn More