Image for Soordas

Soordas

See all formats and editions

तलसीदास पर पसतक लिखन क बाद हिदी क जान-पहचान ही नही, मान हए आलोचक डॉ. नवल न अतःपररणा स सरदास क पदो पर यह आसवादनपरक पसतक लिखी ह, जिसम आवशयक सथानो पर अतयत सकषिपत आलोचनातमक टिपपणिया भी ह। उनहोन कषण और राधा की सकलपना तथा वषणव भकति क उदभव और विकास पर भी काफी शोध किया, लकिन पसतक की पठनीयता बरकरार रखन क लिए उसस परापत तथयो का सकत भमिका म ही करक आग बढ गए ह। आचारय रामचदर शकल दवारा सपादित 'भरमरगीत सार' की भमिका उनकी आलोचना का उततमाश ह, जिसम उनकी शासतरजञता और रसजञता दोनो का अदभत सममिशरण हआ ह। लकिन यह भी सही ह कि उनकी लोक-मगल और करम-सौदरय की कसौटी, जो उनहोन रामचरितमानस स परापत की थी, सर क लिए अपरयापत ह। कारण यह कि उकत दोनो ही शबद बहत वयापक ह, जिनका अभिलषित अरथ ही आचारय न लिया ह। तलसी मलतः परबधातमक कवि थ और कलासिकी, जबकि सर आदयत गीतातमक और सवचछद, इसलिए पहल महाकवि क निकष पर दसर महाकवि को चढाकर दसर क साथ नयाय नही किया जा सकता। डॉ. नवल परगीतातमकता क सबध म एडोरनो की इस उकति क कायल ह कि 'परगीत-कावय इतिहास की 'दारशनिक धपघडी' ह।' इस कारण उसकी छाया को उस तरह नही पकडा जा सकता, जिस तरह इतिवततातमक शली म लिखनवाल किसी कवि की कविता म हम यथारथ को ठोस रप म पकड लत ह। दसरी बात यह कि उनहोन सर की कविता स सीधा साकषातकार किया ह।

Read More
Special order line: only available to educational & business accounts. Sign In
£20.39 Save 15.00%
RRP £23.99
Product Details
Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd
8126723955 / 9788126723959
Book
01/01/2009
India
103 pages
General (US: Trade) Learn More