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Vinayak Sahasra Siddhai

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भारतीय जनमानस म विनायक को लकर जसी शरदधा व विशवास ह, वही उस लोक नायक बनान क लिए परयापत ह। वह सामाजिक दषटि स रढिगरसत समाज को दिशा दता ह और सामाजिक सरोकारो स जडकर लोक-कलयाण को सरवोपरि मानता ह। भारत म आरयावरत क समय स ही या यो कह, उसस परव स ही गणश, गणपति, गणनायक एक ऐस नायक रह ह, जो अपन शरषठ कारयो क कारण घर-घर म वदनीय रह। मानव समाज उनही की वदना करता ह, जो सवा क बदल कोई अपकषा नही करत। विघ्नहर्ता-मंगलमूर्ति-लंबोदर गणेशजी पर केंद्रित इस औपन्यासिक कृति का लेखन इसी वर्ष में पूर्ण हुआ, जिसका आधार मार्कंडेयपुराण, अग्निपुराण, शिवपुराण और गणेशपुराण सहित अनेक संदर्भ ग्रंथों का अध्ययन है।विनायक एक सामान्य विद्यार्थी से लेकर समाज के पथ-प्रदर्शक के रूप में पल-पल पर संघर्ष करता है और प्रतिगामी शक्तियों से मुकाबला करता है। विनायक ने हर उस घटना, कार्य और यात्रा को सामाजिक सरोकारों के साथ जोड़ा है, जिनसे वह गुजरता है। अपने मित्रों पर उसे अटूट विश्वास है। उसके पास अद्भुत संगठन क्षमता है। विनायक एक साधारण नायक से महानायक तक की यात्रा तय करता है; लेकिन मानव होने के नाते सारे गुण-अवगुण अपने भीतर समेटे हुए है। 'विनायक त्रयी' का यह भाग 'विनायक सहस्र सिद्धै' एक ऐसा ही उपन्यास है।अत्यंत रोचक व पठनीय उपन्यास।

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Product Details
Pawan Agrawal
9386870533 / 9789386870537
Hardback
01/12/2019
India
240 pages
General (US: Trade) Learn More