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Rajarshi

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राजरषि रचना-करम म राजरषि (1885) रवीनदरनाथ का दसरा उपनयास ह। इसक कथानक का कनदरीय-सतर तरिपरा क इतिहास स गरहण किया गया ह और रचनाकार न अपनी कलपना व नवीन उदभावना शकति क सहार उस उपनयास का रप दिया ह। सारी घटनाए गोविनदमाणिकय और रघपति क चारो ओर घमती ह। य दोनो पातर वसतत: दो अलग परवततियो क परतिनिधि ह। नकषतरमाणिकय, बिलवन ठाकर, जयसिह, शाह शजा, कदारशवर अपन-अपन ढग स उपनयास क कथानक म झरनो, नदियो, अनतरीपो, गहवरो क समान दशय-अदशय दशाओ का निरमाण करत ह। मन को सबस अधिक झकझोरत ह हासि और ताता। दोनो बालक लकषय बधन म लखक की सबस अधिक सहायता करत ह। राजरषि म रवीनदरनाथ का कवि रप भी ह तथा उनकी सासकतिक व लोक-चतना भी। अनवाद म मल कथय क साथ इनकी रकषा की चषटा भी की गई ह। आवशयकतानसार पाद-टिपपणिया दकर बगाली-समाज की परमपराओ को सबक लिए सलभ करन का परयास किया गया ह। सामगरी की परामाणिकता क सनदरभ म यह अनवाद पाठको को निराश नही करगा।.

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Product Details
Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd
8126725036 / 9788126725038
Book
01/01/2013
India
160 pages
General (US: Trade) Learn More